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Friday 8 September 2017

रंग



रंग तो गिरगिट भी बदलना जानता है 
पर लोग कबसे फितरत बदलना सीख गए 
हर रोज़ उठकर सोचती हूँ
आज किस रंग से रूबरू होना है मुझे 

दिखावट की इस नगरी में ,
चकाचौंध कर देने वाली रौशनी है
फिर क्यों दिलों को अँधेरे ने घेरा हुआ है 
डसना तो सांप भलीभांति जानता है 
पर लोग कबसे फन दिखाना सीख गए 

अमन चैन की बातें होठों पर रहती हैं 
द्वेष बैर से मित्रता क्या शोभा देती है
नक़ल तो बन्दर भी करना जानता है 
पर लोग कबसे होड़ करना सीख गए 

शालिनी 'सरगम'

Thursday 7 September 2017

हमसफ़र

                                  हमसफ़र

हमसफ़र वो नहीं जो उम्र भर संग रहे 
हमसफ़र वो है जो तमाम उम्र साथ दे 

हमसफ़र मेरे कभी नहीं मांगी तुझसे मौजूदगी तेरी 
बस एक तमन्ना है हमेशा रहे सलामती तेरी 

संग होना तो सब निभाना जानते हैं 
मगर साथ देना हर किसी की सीरत में नहीं 

हमसफ़र मेरे  कभी नहीं मांगी तुझसे शामें तेरी
बस एक तमन्ना है मुझपर हमेशा रहे छाँव तेरी 

शालिनी 'सरगम'


Thursday 27 August 2015

भूख



भूख का मतलब क्या है?
इस शब्द का तो कभी अह्सास नहीं हुआ
सुबह उठ्ते ही ब्रेक्फ़ास्ट किया,
फ़िर लन्च का टाईम हो गया
अब डिनर में मनपसंद खाने को मिला
यही रोज़ का नियम बन गया
फ़िर सोचिये किसी दिन ये नियम बद्ले

आज़ भाई हमे उपवास रखने को कहा गया
बस फ़िर क्या लग गये काम पर
सुबह उठते ही माँ का शोर
कुछ खाने को नहीं मिलेगा,
पह्ले नहा लो फ़िर पूजा पाठ करना
आज सुबह- सुबह जल्दी नहाये
जल चढाया ईश्वर को
अब पेट मे जोर जोर से चूहे कूंदे
तभी सामने सेब, सन्तरा, केला
मन तो था आलू का पराँठा, पनीर का पराँठा, और लस्सी
खाये सेब, सन्तरा, केला गये ओफ़िस को

अब सभी मित्रगण लन्च निकाले
हम भी निकाले अपना
दुबेय जी आज तो भरवाँ बैगन बङे स्वाद
हां शर्माजी आपकी रसमलाई तो जान डाल रही है
हमें पूछा अरे भाई गौर साहब घास फूस खा रहे हैं
आज उपवास है हमारा
मन में तो बस, काश हम भी खाते शाही पनीर
अब काम मे लग गये फ़िर से
काम मे मन नहीं लगा, क्यूंकि पेट नहीं भरा
काम खत्म होते ही घर की ओर प्रस्थान
रस्ते मे गोल गप्पे वाला दोस्त मिला,
भैयाजी आज स्पेश्ल है, आइये
अब कैसे समझायें , अब और न तडपाओ
बस बिन कुछ कहे चल दिये,

घर पहुँचकर रात को एक समय भोजन किया
ऐस लगा जैसे कितने सालों बाद हमें खाना मिला
पेट के चूहों को दाना मिला
उस भोजन का स्वाद अलग था
शरीर को जैसे एक नई शक्ति मिली
हम कह दिये अब न रखेंगे उपवास
तो बाबूजी के शब्द ह्में रुला दिये
तुम्हे एक दिन भोजन नहीं मिला तो तुम विचलित हो गए
देश मे कितने लोग रोज भूखे पेट सोते हैं
उनके लिये कभी कुछ सोचा
भूखे नहीं रह सकते हो, तो भूखा रखो भी मत

हर गरीब का हक है भरे पेट सोना
आज भी देश मे लोग भूखे मरते हैं
कब तक लोग मरेंगे, कब तक बच्चे भूखे रोएंगे
क्या हम और हमारी सरकार इतने भी काबिल नहीं
जो भूखों को खाना दे सकें?

Sunday 2 September 2012

दस्तूर -ऐ -मोहब्बत


दस्तूर - -मोहब्बत की ये क्या दास्ताँ है 
हसाती भी है , फसाती भी है
तनहाइयों में हमको रुलाती भी है 

जिक्र जब- होता है हुज़ूर 
परवानो के जलने के किस्से मशहूर
हराती भी है , जिताती भी है 
 परवाज़ से हमको मिलाती भी है 

पाने की  कुछ अधूरी सी चाह
खोने की कुछ अनकही सी राह
जगाती भी है ,सुलाती भी है
दुश्मन हमें ज़माने का बनाती भी है 









Tuesday 28 August 2012

ek gazal..............






aj koi gazal tere naam na kar du 
chalte chalte bas shaam na kar du 
har taraf geeton ki mahfil saji hai
aj apna koi geet benaam na kar du 

aj koi khwaaish tere naam na kar du 
chalte chalte bas shaam na kar du
har taraf charcha "ae "aam ho rahi hai
aaj tujhe kahin badnaam na kar du

शालिनी "सरगम "

"सरगम"




सहज कर संजोया था
मैंने अपनी "सरगम" को
बस पलक झपकते ही
सुर कब दगा दे गये
                        शालिनी "सरगम "

Thursday 23 August 2012

बेचारे मोबाइल फ़ोन की व्यथा !!!!!!!!!!!



 मैं बेचारा मोबाइल फ़ोन 
कितनों के दुःख सुनता हूँ 
पर मेरी व्यथा सुनने को 
कोई व्यापारी उपलब्ध नहीं 

कितनों की मैंने शादियाँ करवाई 
कितने प्रेमियों को मिलवाया 
कितनों के मैंने घर बनवाए 
कितनों को ऊंचा रूतबा दिलवाया 

कुछ लोगों को मैंने सजा दिलवाई 
कुछ को बस टेंशन से मिलवाया 
कुछ की ज़िंदगी बदल कर रख दी 
कुछ की तो बस खत्म ही कर दी 

कितनों को मैंने लड्डू खिलवाये 
कितनों का मैंने मनोरंजन किया 
कितनों को मैंने वोट  दिलवाए 
कितनों को मैंने कोम्पेटीशन जितवाए 

कुछ तो मेरे साथ ही सोते हैं 
कुछ की तो नींदें ही छीन ली हैं 
क्या करें बेचारे 
मोबाइल फ़ोन के मारे 

पर कहानी यहाँ ख़त्म नहीं होती 
मुझ बेचारे के साथ 
कितने अत्याचार हुए हैं 
मैंने हर ख़ुशी और दुःख बांटा  है 
मुझे नया फ़ोन आते ही 
बस दुतकारा है 
मेरी आधी कीमत पर 
बाज़ार में फिर से उतारा है 

देख ली इस जालिम दुनिया की रीति 
कोई नहीं है किसी को मुझ से प्रीति
पर मेरे पास मेरे कुछ प्रिय शब्द हैं 
“Jai mata di let’s rock
Dungaa mein ab tum sabko shock”
                                           (  शालिनी )