Thursday 27 August 2015

भूख



भूख का मतलब क्या है?
इस शब्द का तो कभी अह्सास नहीं हुआ
सुबह उठ्ते ही ब्रेक्फ़ास्ट किया,
फ़िर लन्च का टाईम हो गया
अब डिनर में मनपसंद खाने को मिला
यही रोज़ का नियम बन गया
फ़िर सोचिये किसी दिन ये नियम बद्ले

आज़ भाई हमे उपवास रखने को कहा गया
बस फ़िर क्या लग गये काम पर
सुबह उठते ही माँ का शोर
कुछ खाने को नहीं मिलेगा,
पह्ले नहा लो फ़िर पूजा पाठ करना
आज सुबह- सुबह जल्दी नहाये
जल चढाया ईश्वर को
अब पेट मे जोर जोर से चूहे कूंदे
तभी सामने सेब, सन्तरा, केला
मन तो था आलू का पराँठा, पनीर का पराँठा, और लस्सी
खाये सेब, सन्तरा, केला गये ओफ़िस को

अब सभी मित्रगण लन्च निकाले
हम भी निकाले अपना
दुबेय जी आज तो भरवाँ बैगन बङे स्वाद
हां शर्माजी आपकी रसमलाई तो जान डाल रही है
हमें पूछा अरे भाई गौर साहब घास फूस खा रहे हैं
आज उपवास है हमारा
मन में तो बस, काश हम भी खाते शाही पनीर
अब काम मे लग गये फ़िर से
काम मे मन नहीं लगा, क्यूंकि पेट नहीं भरा
काम खत्म होते ही घर की ओर प्रस्थान
रस्ते मे गोल गप्पे वाला दोस्त मिला,
भैयाजी आज स्पेश्ल है, आइये
अब कैसे समझायें , अब और न तडपाओ
बस बिन कुछ कहे चल दिये,

घर पहुँचकर रात को एक समय भोजन किया
ऐस लगा जैसे कितने सालों बाद हमें खाना मिला
पेट के चूहों को दाना मिला
उस भोजन का स्वाद अलग था
शरीर को जैसे एक नई शक्ति मिली
हम कह दिये अब न रखेंगे उपवास
तो बाबूजी के शब्द ह्में रुला दिये
तुम्हे एक दिन भोजन नहीं मिला तो तुम विचलित हो गए
देश मे कितने लोग रोज भूखे पेट सोते हैं
उनके लिये कभी कुछ सोचा
भूखे नहीं रह सकते हो, तो भूखा रखो भी मत

हर गरीब का हक है भरे पेट सोना
आज भी देश मे लोग भूखे मरते हैं
कब तक लोग मरेंगे, कब तक बच्चे भूखे रोएंगे
क्या हम और हमारी सरकार इतने भी काबिल नहीं
जो भूखों को खाना दे सकें?