Friday, 11 March 2011

कैसे कहें फिर से..


बहुत कुछ कहा हमने,
बहुत कुछ सुना तुमने
फिर भी बढ़ गई ,
क्यूँ ये दूरियां                       
यही सोचते रह गए हम,
कैसे कहें फिर से...........

कहना तो था तुम्हें,
पर राह न दिखी हमें
ढूढनें की चाह थी जिसे ,
पर ढूँढ न सके उसे
मंजिलें ढल रहीं थीं,
और मैं यही सोच रही थी
कैसे कहें फिर से.....................

बहुत प्रेम था तुमसे हमें,
क्यूँ न तुम समझ सके
बताना चाहा भी तुमने बहुत,
पर क्यूँ न हम समझ सके
इसी कशमकश में
 जिंदगी बिखर गई,
फिर यही ख्याल आया
कैसे कहें फिर से.......................

इतने सपने थे इन निगाहों में,
की तुम्हें पाएंगे अपनी इन बाँहों में
बहुत बांधना चाहा तुम्हें,
 उस डोर से,
पर लौटा न सके तुम्हें
 उस मोड से,
यही दर्द था इस दिल में,
और फंसे रहे हम,
इसी असमंजस में,
सोचते रहे यही बस,
कैसे कहें फिर से...............

13 comments:

  1. keep up the good work sis..

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  2. hi di,
    very very jakkas ek dum ,kya poem h...
    cheers ..

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  3. wow maza a gya thanks for this one......

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  4. this 1 is gr8..feelin proud to hv u around me sis...keep the spirits high nd continue dis gr8 stuff

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  5. thanks to all of u ..........for liking my work..........will be back with more stuff

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  6. gud 1...bahut feelings k saath ye poem likhi h...
    nice..keep it up n do post some more stuff soon..m waiting.. :)

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  7. awesome sweety,feeling proud 2 have such a talented friend.waiting for some more good stuff......

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  8. bhut acha talented hai apni frnd koi bhi kuch sikho

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  9. simple words put together brilliantly... that even describes you as a person shalini simple yet vivid.. great work girl... keep it going... waiting for the next one.

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  10. thanks to all 0f u..........:)

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