बहुत कुछ कहा हमने,
बहुत कुछ सुना तुमने
फिर भी बढ़ गई ,
यही सोचते रह गए हम,
कैसे कहें फिर से...........
कहना तो था तुम्हें,
पर राह न दिखी हमें
ढूढनें की चाह थी जिसे ,
पर ढूँढ न सके उसे
मंजिलें ढल रहीं थीं,
और मैं यही सोच रही थी
कैसे कहें फिर से.....................
बहुत प्रेम था तुमसे हमें,
क्यूँ न तुम समझ सके
बताना चाहा भी तुमने बहुत,
पर क्यूँ न हम समझ सके
इसी कशमकश में
जिंदगी बिखर गई,
फिर यही ख्याल आया
कैसे कहें फिर से.......................
इतने सपने थे इन निगाहों में,
की तुम्हें पाएंगे अपनी इन बाँहों में
बहुत बांधना चाहा तुम्हें,
उस डोर से,
पर लौटा न सके तुम्हें
उस मोड से,
यही दर्द था इस दिल में,
और फंसे रहे हम,
इसी असमंजस में,
सोचते रहे यही बस,
कैसे कहें फिर से...............
keep up the good work sis..
ReplyDeletehi di,
ReplyDeletevery very jakkas ek dum ,kya poem h...
cheers ..
wow maza a gya thanks for this one......
ReplyDeletethis 1 is gr8..feelin proud to hv u around me sis...keep the spirits high nd continue dis gr8 stuff
ReplyDeletenice one di
ReplyDeletethanks to all of u ..........for liking my work..........will be back with more stuff
ReplyDeletegud 1...bahut feelings k saath ye poem likhi h...
ReplyDeletenice..keep it up n do post some more stuff soon..m waiting.. :)
Its so Nice :)
ReplyDeleteawesome sweety,feeling proud 2 have such a talented friend.waiting for some more good stuff......
ReplyDeletebhut acha talented hai apni frnd koi bhi kuch sikho
ReplyDeletesimple words put together brilliantly... that even describes you as a person shalini simple yet vivid.. great work girl... keep it going... waiting for the next one.
ReplyDeletenice one...keep it up...
ReplyDeletethanks to all 0f u..........:)
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