Friday, 8 September 2017

रंग



रंग तो गिरगिट भी बदलना जानता है 
पर लोग कबसे फितरत बदलना सीख गए 
हर रोज़ उठकर सोचती हूँ
आज किस रंग से रूबरू होना है मुझे 

दिखावट की इस नगरी में ,
चकाचौंध कर देने वाली रौशनी है
फिर क्यों दिलों को अँधेरे ने घेरा हुआ है 
डसना तो सांप भलीभांति जानता है 
पर लोग कबसे फन दिखाना सीख गए 

अमन चैन की बातें होठों पर रहती हैं 
द्वेष बैर से मित्रता क्या शोभा देती है
नक़ल तो बन्दर भी करना जानता है 
पर लोग कबसे होड़ करना सीख गए 

शालिनी 'सरगम'

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