आज सोचती हूँ ,
क्यूँ न एक कहानी लिखूं
कुछ शब्द मिले हैं ,
कुछ बाक़ी हैं
शब्दों से ख्याल आया ,
क्यूँ न नि :शब्दों को लिखूं
कागज़ पर उतारते ही ,
उन्हें तो जुबां मिल गयी
जुबां से ख्याल आया ,
क्यूँ न बेजुबां अहसासों को लिखूं
लिखने लगी तो उनकी
गहराई मिल गई
गहराई से ख्याल आया ,
क्यूँ न दिल की गहराई को लिखूं
लिखने लगी तो ,
भावों का समंदर दिख गया
जहाँ मेरे शब्दों का ,
कोई अंत न था
अब समझ में आया , एक कवि
उसके भावों ,उसकी कल्पनाओं की
कोई सीमा नहीं होती
बस होती है तो
उसके शब्दों की एक अथाह धारा
( शालिनी )