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Thursday, 26 September 2024

                         


रिश्ते 


 

ये रिश्ते हैं थोड़े नाज़ुक और पेचीदा 

इनके पेच कसने में ज़िंदगियाँ छूट जाएँगी 

यही बेहतर है की हम,

शुरुआत करें फिर से 

अजनबियों की तरह,

 मुलाकात करें फिर से 

थोड़ा तुम शुरू करना, 

फिर मैं संभालूंगा

 शिकवे होंगे, शिकायतें होंगी 

कुछ तुम कहना , कुछ मैं सुनाऊंगा 

यही कोशिश एक नया अंजाम देगी 

जितना बांधकर रखेंगे 

उतना खुद को कैद पाएंगे 

थोड़ी आज़ादी और सम्मान देकर 

हम अपने किरदारों को बखूबी निभा पाएंगे 

                            शालिनी'सरगम'



                           

                                   मेरी प्यारी रचना 




शब्द छुप गए थे कहीं बादलों में 

घटाओं ने घेरा था अपने आगोश में 

फिर से हिम्मत जुटाने का साहस नहीं था

वो प्रोत्साहन भी टूट कर बिखरा हुआ था 

कागज़ सिमट कर  लिफाफों में लगे थे 

खोया हुआ वो दौर फिर से पाना था 

नयी शुरुआत को गले लगाना था 

जागा भरोसा कलम पर 

करिश्मा दिखने के लिए 

फिर से हस्ती बनाने के लिए 

एक नयी उम्मीद , नया भरोसा 

नए शब्द , नयी सोच 

नया कारवां, नया जूनून 

नयी सरगम , नया गीत 

और नयी नवेली मेरी प्यारी सी रचना 

                           शालिनी'सरगम' 


Tuesday, 24 September 2024

                                                                              

                                                                             

            

खुद से इश्क़ 




कभी खुद को बहलाओ, 

फुस्लाओ,

चुटकुले सुनाओ ,

सभी हदें पार करो खुश रहने की ,

ये बात नहीं है सिर्फ कहने की 

आईने में संवारो ,

खुद को निहारो,

छुपी हुई काबिलियत को निखारो,

सभी हदें पार करो खुश रहने की, 

ये बात नहीं है सिर्फ कहने की 

अपने आशिक़ बनो ,

कदरदान बनो ,

अपने चाँद से चेहरे की मुस्कान बनो ,

कुछ वक़्त निकालकर ज़िन्दगी से ,

तुम खुद की पहचान बनो 

                                              शालिनी 'सरगम'

Wednesday, 11 September 2024

        

                                                                      राधा रानी का वर्णन


 सुन्दर सुशील मनमोहिनी सी बाला तू 

सांवरे के प्रेम में सजी  है एक माला तू  

बरसाना गांव के बृजभान की दुलारी है 

कृष्णा की सखी , अपने श्याम पर बलिहारी है 

कोमल, कठोर , कृपालु , कुमुदिनी सी 

गलियों में रास करती , श्याम संग दीवानी है 

त्याग और सामान की अनोखी एक प्रेरणा 

शक्ति अपने कृष्ण की बनी आज कहानी है 

सुन्दर सुशील मनमोहिनी सी राधा तू 

सांवरे के प्रेम में बंधी है एक माला तू                

                                                   शालिनी 'सरगम' 

Friday, 8 September 2017

रंग



रंग तो गिरगिट भी बदलना जानता है 
पर लोग कबसे फितरत बदलना सीख गए 
हर रोज़ उठकर सोचती हूँ
आज किस रंग से रूबरू होना है मुझे 

दिखावट की इस नगरी में ,
चकाचौंध कर देने वाली रौशनी है
फिर क्यों दिलों को अँधेरे ने घेरा हुआ है 
डसना तो सांप भलीभांति जानता है 
पर लोग कबसे फन दिखाना सीख गए 

अमन चैन की बातें होठों पर रहती हैं 
द्वेष बैर से मित्रता क्या शोभा देती है
नक़ल तो बन्दर भी करना जानता है 
पर लोग कबसे होड़ करना सीख गए 

शालिनी 'सरगम'

Thursday, 7 September 2017

हमसफ़र

                                  हमसफ़र

हमसफ़र वो नहीं जो उम्र भर संग रहे 
हमसफ़र वो है जो तमाम उम्र साथ दे 

हमसफ़र मेरे कभी नहीं मांगी तुझसे मौजूदगी तेरी 
बस एक तमन्ना है हमेशा रहे सलामती तेरी 

संग होना तो सब निभाना जानते हैं 
मगर साथ देना हर किसी की सीरत में नहीं 

हमसफ़र मेरे  कभी नहीं मांगी तुझसे शामें तेरी
बस एक तमन्ना है मुझपर हमेशा रहे छाँव तेरी 

शालिनी 'सरगम'


Thursday, 27 August 2015

भूख



भूख का मतलब क्या है?
इस शब्द का तो कभी अह्सास नहीं हुआ
सुबह उठ्ते ही ब्रेक्फ़ास्ट किया,
फ़िर लन्च का टाईम हो गया
अब डिनर में मनपसंद खाने को मिला
यही रोज़ का नियम बन गया
फ़िर सोचिये किसी दिन ये नियम बद्ले

आज़ भाई हमे उपवास रखने को कहा गया
बस फ़िर क्या लग गये काम पर
सुबह उठते ही माँ का शोर
कुछ खाने को नहीं मिलेगा,
पह्ले नहा लो फ़िर पूजा पाठ करना
आज सुबह- सुबह जल्दी नहाये
जल चढाया ईश्वर को
अब पेट मे जोर जोर से चूहे कूंदे
तभी सामने सेब, सन्तरा, केला
मन तो था आलू का पराँठा, पनीर का पराँठा, और लस्सी
खाये सेब, सन्तरा, केला गये ओफ़िस को

अब सभी मित्रगण लन्च निकाले
हम भी निकाले अपना
दुबेय जी आज तो भरवाँ बैगन बङे स्वाद
हां शर्माजी आपकी रसमलाई तो जान डाल रही है
हमें पूछा अरे भाई गौर साहब घास फूस खा रहे हैं
आज उपवास है हमारा
मन में तो बस, काश हम भी खाते शाही पनीर
अब काम मे लग गये फ़िर से
काम मे मन नहीं लगा, क्यूंकि पेट नहीं भरा
काम खत्म होते ही घर की ओर प्रस्थान
रस्ते मे गोल गप्पे वाला दोस्त मिला,
भैयाजी आज स्पेश्ल है, आइये
अब कैसे समझायें , अब और न तडपाओ
बस बिन कुछ कहे चल दिये,

घर पहुँचकर रात को एक समय भोजन किया
ऐस लगा जैसे कितने सालों बाद हमें खाना मिला
पेट के चूहों को दाना मिला
उस भोजन का स्वाद अलग था
शरीर को जैसे एक नई शक्ति मिली
हम कह दिये अब न रखेंगे उपवास
तो बाबूजी के शब्द ह्में रुला दिये
तुम्हे एक दिन भोजन नहीं मिला तो तुम विचलित हो गए
देश मे कितने लोग रोज भूखे पेट सोते हैं
उनके लिये कभी कुछ सोचा
भूखे नहीं रह सकते हो, तो भूखा रखो भी मत

हर गरीब का हक है भरे पेट सोना
आज भी देश मे लोग भूखे मरते हैं
कब तक लोग मरेंगे, कब तक बच्चे भूखे रोएंगे
क्या हम और हमारी सरकार इतने भी काबिल नहीं
जो भूखों को खाना दे सकें?