मैं बेचारा मोबाइल फ़ोन
कितनों के दुःख सुनता हूँ
पर मेरी व्यथा सुनने को
कोई व्यापारी उपलब्ध नहीं
कितनों की मैंने शादियाँ करवाई
कितने प्रेमियों को मिलवाया
कितनों के मैंने घर बनवाए
कितनों को ऊंचा रूतबा दिलवाया
कुछ लोगों को मैंने सजा दिलवाई
कुछ को बस टेंशन से मिलवाया
कुछ की ज़िंदगी बदल कर रख दी
कुछ की तो बस खत्म ही कर दी
कितनों को मैंने लड्डू खिलवाये
कितनों का मैंने मनोरंजन किया
कितनों को मैंने वोट
दिलवाए
कितनों को मैंने कोम्पेटीशन जितवाए
कुछ तो मेरे साथ ही सोते हैं
कुछ की तो नींदें ही छीन ली हैं
क्या करें बेचारे
मोबाइल फ़ोन के मारे
पर कहानी यहाँ ख़त्म नहीं होती
मुझ बेचारे के साथ
कितने अत्याचार हुए हैं
मैंने हर ख़ुशी और दुःख बांटा
है
मुझे नया फ़ोन आते ही
बस दुतकारा है
मेरी आधी कीमत पर
बाज़ार में फिर से उतारा है
देख ली इस जालिम दुनिया की रीति
कोई नहीं है किसी को मुझ से प्रीति
पर मेरे पास मेरे कुछ प्रिय शब्द हैं
“Jai mata di let’s rock
Dungaa mein ab tum sabko shock”
( शालिनी )
No comments:
Post a Comment