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Thursday, 19 July 2012


फ़साना भी में हूँ . दीवाना भी में हूँ 
ज़माना भी में हूँ , तराना भी मैं हूँ
ज़रा देख तू भी , एक नज़र भर के मुझको 
हजारों में खिलता वो गुलज़ार में हूँ

तेरी एक झलक को तरसता भी में हूँ
तेरी उन आँखों को पढता  भी में हूँ
तुझे इसका अहसास कैसे कराऊँ 
तेरी इन बातों का कायल भी में हूँ



तुझे इस कदर समझता भी में हूँ
तेरी हर आदत को चाहता भी में हूँ
तुझे ये हकीकत बताऊँ भी तो कैसे
तुझे खोने से डरता भी में हूँ

शिकायत तुझी से करता भी में हूँ
नजाकत तेरी सहता भी में हूँ
अरे जालम इस कदर इतरा 
तुझी से मोहब्बत करता भी  में हूँ