कभी कभी एक ऐसा ख्वाब आता है
जैसे मेरे मन में ,
एक तरंग सी उठी है
मैं उसमे खोकर अचानक,
कहीं डूब गई हूँ
फिर मेरी आँख खुली तो पाया
ये तो मेरा ख्वाब था,
और सच्चाई तो कुछ और ही थी
कभी कभी एक ऐसा ख्वाब आता है.....................
कहीं दूर एक साया है,
जिसे कभी मैंने ,
वह न जाने कौन सी,
कल्पना है मेरी
जिसे हकीकत मैं ,
समझ बैठी हूँ
डरती हूँ इस ख्वाब से,
और आने वाले उस सैलाब से
कभी कभी एक ऐसा ख्वाब आता है.....................
क्यूँ मेरा मन मेरा नहीं है
जिसे समझा अपना,
वह अपना नहीं है
कैसी हकीकत है ये,
जो ख्वाब लगती है
मेरी आँखें जिसे ,
देखकर जगती है
अचानक कहीं से एक लहर आई,
और बन गई मेरी परछाई
कभी कभी एक ऐसा ख्वाब आता है.....................
सोचा तो बहुत उस ख्वाब को
पर रोक न सकी अपने आप को
दौड़ने लगी उसे ,
और कांटे बिछे पाए ,
अपनी उस राह में
परन्तु मैंने तो ,
लड़ना सीखा था
अपने उस ख्वाब पर,
अडना सीखा था
जीत लिया उसे ,
अपने ज़ज्बे से
और फिर चल पड़ी ,
उन्हीं कदमो से
कभी कभी एक ऐसा ख्वाब आता है.....................