कभी कभी एक ऐसा ख्वाब आता है
जैसे मेरे मन में ,
एक तरंग सी उठी है
मैं उसमे खोकर अचानक,
कहीं डूब गई हूँ
फिर मेरी आँख खुली तो पाया
ये तो मेरा ख्वाब था,
और सच्चाई तो कुछ और ही थी
कभी कभी एक ऐसा ख्वाब आता है.....................
कहीं दूर एक साया है,
जिसे कभी मैंने ,
वह न जाने कौन सी,
कल्पना है मेरी
जिसे हकीकत मैं ,
समझ बैठी हूँ
डरती हूँ इस ख्वाब से,
और आने वाले उस सैलाब से
कभी कभी एक ऐसा ख्वाब आता है.....................
क्यूँ मेरा मन मेरा नहीं है
जिसे समझा अपना,
वह अपना नहीं है
कैसी हकीकत है ये,
जो ख्वाब लगती है
मेरी आँखें जिसे ,
देखकर जगती है
अचानक कहीं से एक लहर आई,
और बन गई मेरी परछाई
कभी कभी एक ऐसा ख्वाब आता है.....................
सोचा तो बहुत उस ख्वाब को
पर रोक न सकी अपने आप को
दौड़ने लगी उसे ,
और कांटे बिछे पाए ,
अपनी उस राह में
परन्तु मैंने तो ,
लड़ना सीखा था
अपने उस ख्वाब पर,
अडना सीखा था
जीत लिया उसे ,
अपने ज़ज्बे से
और फिर चल पड़ी ,
उन्हीं कदमो से
कभी कभी एक ऐसा ख्वाब आता है.....................
good work
ReplyDeletenice one swty..
ReplyDeleteGreat chaah salini.....hope you will find your dream .................(I am vikas frnd)
ReplyDeletegr8 wrk..evry wrd identifies the shalini gaur we all know..
ReplyDeletewow wht a poem yaar...ye to dil ko choo gayi seriously.. :)grt.
ReplyDeleteamazing one.....keep up the good work sweety.......
ReplyDeletenice poem ye toh dil le gyi
ReplyDeletethis one is really inspiring ... and again.. must say you have spoken your heart out... never thought ms. shalini gaur.. that you would be so thoughful.. good to see this side of you... you have a talent.. cultivate it.. keep going.
ReplyDeleteamazing shalini.....such mai tu itna accha likhti hai, cant believe...perfect words perfect imagination.....really adorable...
ReplyDeletethanks mam ........so sweet of u.........:)
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