ज़िन्दगी बहुत छोटी है
फिर भी हम इसे जी नहीं पाते
हर मोड़ पर विचलित होना तो ,
जैसे बस फितरत बन गया है
खुद के नजरिये से ज्यादा
फिर भी हम इसे जी नहीं पाते
हर मोड़ पर विचलित होना तो ,
जैसे बस फितरत बन गया है
खुद के नजरिये से ज्यादा
दुसरो के शब्दों पर यकीन है
अपनी इन आँखों को मूँद कर
तमाशा देखना तो
जैसे बस आदत बन गया है
कभी सोचते हैं ज़िन्दगी से
कुछ गुफ्तगू करे
पर उसे समझ के भी न समझ पाना
तो जैसे बस एक हसरत बन गया है
अपनी इन आँखों को मूँद कर
तमाशा देखना तो
जैसे बस आदत बन गया है
कभी सोचते हैं ज़िन्दगी से
कुछ गुफ्तगू करे
पर उसे समझ के भी न समझ पाना
तो जैसे बस एक हसरत बन गया है
बहुत खूब
ReplyDeleteसादर
धन्यवाद् यशवंत जी .......मेरी कला को प्रोत्साहित करने के लिए ....बहुत बहुत शुक्रिया .....:)
Deleteवाह वाह !... काफी सुन्दर रचना ...
ReplyDelete" खुद के नजरिये से ज्यादा
दुसरो के शब्दों पर यकीन है
अपनी इन आँखों को मूँद कर
तमाशा देखना तो
जैसे बस आदत बन गया है "...
लाजवाब पंक्तियाँ ... बहुत सुन्दर... तारीफ करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है ...
बहुत बहुत शुक्रिया आपका ......मेरी इस कोशिश को सराहने का......:)
Deleteशालिनी जी बहुत अच्छा लिखतीं हैं आप.
ReplyDeleteअनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है.
bahut shukriya aapka rakesh ji ......aapko bhi hardik shubkamnayeiin:)
DeleteSuch is life, Sigh! Lovely writing!
ReplyDeletethank u saru .....thanks 4 reading it :)
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